बन बन के बिगड़ जाएगी तदबीर कहाँ तक By Ghazal << इश्क़ से मैं डर चुका था ड... मसीह-ए-वक़्त भी देखे है द... >> बन बन के बिगड़ जाएगी तदबीर कहाँ तक चक्कर में रखेगी मुझे तक़दीर कहाँ तक कुछ ग़ैर की जानिब निगह-ए-नाज़ की हद भी खाता रहे महफ़िल में कोई तीर कहाँ तक जाता हूँ उसे ढूँडने महफ़िल में अदू की देखूँ तो बिगड़ती है ये तक़दीर कहाँ तक Share on: