बन गईं महजूरियाँ आज़ार-ए-जाँ किस से कहें हम दिल-ए-बेताब की बेताबियाँ किस से कहें आह सामान-ए-सुकून-ए-ज़िंदगी मुमकिन नहीं हो गए दुश्मन ज़मीन-ओ-आसमाँ किस से कहें ज़िंदगी की बज़्म अहल-ए-दर्द से ख़ाली हुई दर्द में डूबी हुई ये दास्ताँ किस से कहें गर्दिशों ने लूट ली यकसर मता-ए-ज़िंदगी बाग़बाँ ने नोच फेंका आशियाँ किस से कहें ज़िंदगी का लम्हा लम्हा सद मसाइब दर-बग़ल हर घड़ी है एक दौर-ए-इम्तिहाँ किस से कहें गर्दिशें नाकामियाँ महरूमियाँ मायूसियाँ हो गई है ज़िंदगी बार-ए-गराँ किस से कहें कौन देखे हुस्न की पैहम सितम-ईजादियाँ आशिक़ी की बंदिश-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ किस से कहें हिज्र की कैफ़िय्यतों से है किसी को क्या ग़रज़ हम यहाँ पर मुज़्तरिब हैं तुम वहाँ किस से कहें सुनने वालों से हुआ मफ़क़ूद सुनने का मज़ाक़ गुलिस्तान-ए-इश्क़ की बर्बादियाँ किस से कहें चप्पा-चप्पा अहल-ए-दिल के वास्ते है ख़ार-ज़ार ज़र्रा-ज़र्रा आशिक़ों से बद-गुमाँ किस से कहें दिल की बातें लब पर आएँ भी तो सुनता कौन है उठ गए सब हम-ख़याल-ओ-हम-ज़बाँ किस से कहें यार जब अग़्यार हो जाएँ तो क्या लुत्फ़-ए-सुख़न मेहरबाँ हो जाएँ जब ना-मेहरबाँ किस से कहें दिल के अरमाँ रफ़्ता-रफ़्ता 'नामी'-ए-अंदोह-गीं जा रहे हैं कारवाँ-दर-कारवाँ किस से कहें