बज़्म में उन की जाना भी होश में वापस आना भी एक निगाह-ए-नाज़ में है जीना भी मर जाना भी रूदाद-ए-मंसूर सुनी सुन मेरा अफ़साना भी इश्क़ है बन भी तारिक-ए-दीं अक़्ल से हो बेगाना भी दिल से समझना भी है कुछ कुछ है उसे समझाना भी उफ़ साक़ी की मस्त निगाह झूम गया मय-ख़ाना भी बादा-ए-इश्क़ से हैं रंगीन मीना भी पैमाना भी पूछ न है कितना पुर-कैफ़ धोके में दिल के आना भी यार के निकले दीवाने नादाँ भी सब दाना भी राह-ए-इश्क़ है वो जिस का खो देना है पाना भी रस्म-ए-वफ़ा का उठना था 'नामी' का मर जाना भी