बना गया है बयाबाँ का बाग़बाँ मुझ को रुला गया है सितम-ज़र्फ़ आसमाँ मुझ को मिले हैं अश्क-ए-रवाँ नाला-ओ-फ़ुग़ाँ फ़रियाद दिया है हाए ये सब तू ने मेहरबाँ मुझ को दिया है तुम ने ही इल्ज़ाम बेवफ़ाई का सितम है तुम ने ही समझा है बद-गुमाँ मुझ को मैं मिट गया भी तो मेरा वजूद क़ाएम है न समझे फिर कोई बे-नाम-ओ-बे-निशाँ मुझ को न जाने कौन सी शय से छुआ गया हूँ मैं कि ढूँढती ही रही गर्द-ए-कारवाँ मुझ को क़फ़स नसीब हूँ तन्हाई है अंधेरा है हर एक सम्त नज़र आए है धुआँ मुझ को फ़ना की ज़द से हूँ बाहर ये जानता हूँ मैं हयात मिल गई है जब कि जावेदाँ मुझ को न जाने क्यों मिरे नक़्श-ए-क़दम से नफ़रत थी मिटा के रख दिया देखा जहाँ-जहाँ मुझ को वो गुल्सिताँ कि जहाँ जल गया दिल-ए-महज़ूँ पुकारता है वहाँ अपना आशियाँ मुझ को बहार अज़ीज़ है वो कहते हैं मगर मुझ को अज़ीज़-तर है 'शफ़क़' मौसम-ए-ख़िज़ाँ मुझ को