दिल की धड़कन को हयात-ए-जाविदाँ समझा किए चंद लम्हों को बहार-ए-बे-कराँ समझा किए उन के जलवों का ये धोका था कि हम भी उम्र भर एक उजड़े आशियाँ को गुल्सिताँ समझा किए ये हमारी एक लग़्ज़िश थी कि राह-ए-इश्क़ में हर निशान-ए-रह को संग-ए-आस्ताँ समझा किए किस तरह अब हम निभाएँ रस्म-ओ-आईन-ए-वफ़ा जब किसी ना-मेहरबाँ को मेहरबाँ समझा किए जाने क्या आँखों से अश्कों ने कहा था रात भर नोक-ए-मिज़्गाँ मुझ को अपना राज़-दाँ समझा किए जब हज़ारों को सुनाई थी हदीस-ए-दर्द-ओ-ग़म एक तुम ही थे जो मेरी दास्ताँ समझा किए ऐसे भी कुछ नाम हैं तारीख़ के सफ़्हात पर ज़िंदगी में हर-नफ़स को इम्तिहाँ समझा किए किस तरह देते उन्हें हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल का जवाब एक मुद्दत तक हमें जो बद-गुमाँ समझा किए ये हमारी बद-नसीबी थी कि अब तक ऐ 'शफ़क़' इश्क़ में बर्बादियों को राएगाँ समझा किए