बना है दुश्मन-ए-गुल जब से बाग़बाँ अपना भरी बहार में जलता है आशियाँ अपना अगर हो इज़्न तो ऐ मीर-ए-कारवाँ पूछूँ चला है कौन सी मंज़िल को कारवाँ अपना अब इस गली में मिरा कोई हम-जलीस नहीं क़दम क़दम पे जहाँ कल था राज़-दाँ अपना जहाज़ अपने हरीफ़ों के बे-शुमार सही करो न फ़िक्र कि दरिया है बे-कराँ अपना ज़मीं के फ़ित्नों से हम किस लिए डरें 'बेताब' कि आसमान है हर लम्हा पासबाँ अपना