बना लेता मैं तुझ को हम-सफ़र कुछ साल पहले तक मगर इस बात से लगता था डर कुछ साल पहले तक मुझे फ़िक्र-ए-मईशत थी तुझे ख़ौफ़-ए-जुदाई था अलग थे ज़ाविया-हा-ए-नज़र कुछ साल पहले तक मैं नादाँ था उसे अपने तसर्रुफ़ में नहीं लाया बहुत नज़दीक थी शाख़-ए-समर कुछ साल पहले तक तिरी दरवेश-आँखों का इरादत-मंद बन जाता तू मुझ को मिल गई होती अगर कुछ साल पहले तक इन्हें चुन चुन के तेरे इश्क़ का ईंधन बना देता ये माह-ओ-साल साले थे किधर कुछ साल पहले तक तिरे गालों के डिम्पल में निगाहें डूब जाती थीं लहू में रक़्स करते थे भँवर कुछ साल पहले तक मुझे 'यावर-अज़ीम' अब तक वो आँखें याद आती हैं मैं उन पलकों के था ज़ेर-ए-असर कुछ साल पहले तक