बने न बात तो इज़हार-ए-मुद्दआ क्या है जो मंज़िलों पे न पहुँचे वो रास्ता क्या है हुआ जो ग़र्क़ सफ़ीना पहुँच के साहिल पर तो नाख़ुदा को पता चल गया ख़ुदा क्या है इसी से दहर ने पाया सुराग़ मंज़िल का चराग़-ए-राह क्या है मेरा नक़्श-ए-पा क्या है सुकूँ की छाँव मयस्सर न प्यार का साया हयात एक कड़ी धूप के सिवा क्या है क़रीब से वो गुज़र जाए अजनबी की तरह मैं सोचता हूँ कि इस से बड़ी सज़ा क्या है वो शख़्स जिस की नज़ाकत पे लोग मरते हैं दिलों को तोड़ दिया उस ने आइना क्या है तसव्वुर-ए-ग़म-ए-जानाँ का रास्ता रोके 'मजीद' गर्दिश-ए-दौराँ का हौसला क्या है