बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला नया सफ़र भी बहुत ही गुरेज़-पा निकला न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही जिसे क़रीब से देखा वो दूसरा निकला हमें तो रास न आई किसी की महफ़िल भी कोई ख़ुदा कोई हम-साया-ए-ख़ुदा निकला हज़ार तरह की मय पी हज़ार तरह के ज़हर न प्यास ही बुझी अपनी न हौसला निकला हमारे पास से गुज़री थी एक परछाईं पुकारा हम ने तो सदियों का फ़ासला निकला अब अपने-आप को ढूँडें कहाँ कहाँ जा कर अदम से ता-ब-अदम अपना नक़्श-ए-पा निकला