मुझे तन्हाई के ग़म से बचा लेते तो अच्छा था सफ़र में हम-सफ़र अपना बना लेते तो अच्छा था शिकस्त-ए-फ़ाश का ग़म ज़िंदगी जीने से बद-तर है झुकाने की बजाए सर कटा लेते तो अच्छा था कभी अश्कों पे इतना ज़ब्त भी अच्छा नहीं होता ये चश्मा फिर ज़रर देगा बहा लेते तो अच्छा था भला क्या फ़ाएदा अब क़ब्र पे आँसू बहाने से अगर माँ-बाप की पहले दुआ लेते तो अच्छा था शिकायत से भला 'साहिल' हुआ है फ़ाएदा किस का ग़म-ए-दिल गर हँसी में तुम छुपा लेते तो अच्छा था