बानी-ए-जौर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब राहत-ए-जाँ कोई दिलबर नहीं जल्लाद हैं सब कभी तूबा तिरे क़ामत से न होगा बाला बातें कहने की ये ऐ ग़ैरत-ए-शमशाद हैं सब मिज़ा ओ अबरू ओ चश्म ओ निगह ओ ग़म्ज़ा ओ नाज़ हक़ जो पूछो तो मिरी जान के जल्लाद हैं सब सर्व को देख के कहता है दिल-ए-बस्ता-ए-ज़ुल्फ़ हम गिरफ़्तार हैं इस बाग़ में आज़ाद हैं सब कुछ है बेहूदा ओ नाक़िस तो 'अमानत' का कलाम यूँ तो कहने को फ़न-ए-शेर में उस्ताद हैं सब