इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी इब्न-ए-आदम की हर अदा बिगड़ी चारासाज़ों की चारा-साज़ी से और बीमार की दशा बिगड़ी बाज़ आया न अपनी फ़ितरत से मेरी नासेह से बारहा बिगड़ी बन गया मरजा-ए-ख़लाइक़-ए-दश्त शहर की इस क़दर फ़ज़ा बिगड़ी नाम रक्खा गया सुमूम उस का लाला-ओ-गुल से जब सबा बिगड़ी मय-कदे में भी देख कर न कहो निय्यत-ए-शैख़-ए-पारसा बिगड़ी तर्क-ए-उल्फ़त के बअ'द तो 'आतिश' बात पहले से भी सिवा बिगड़ी