बाप ज़िंदा फिर रहा है और बेटे मर गए बूढ़े बरगद के अचानक कितने हिस्से मर गए था मोहब्बत का वज़ीफ़ा इस लिए शादाब थे आँख सोई बाग़बाँ की और पौदे मर गए ज़ेहन-ओ-दिल में ख़ौफ़ था ये साँस रुकनी है ज़रूर डर के क़ैदी देखिए फिर डरते डरते मर गए दे रहा है मुझ को वो रिज़्क-ए-सुख़न आग़ाज़ से वर्ना मेरे जैसे कितने आए कितने मर गए इक तरफ़ थी ‘ऐश-ओ-‘इशरत की फ़ज़ा मीरास में और कुछ अस्लाफ़ के ग़म ढोते ढोते मर गए उफ़ दरिंदों की बक़ा मा'सूम जानें ले उड़ी कुछ शिकम में कुछ ज़मीं पर पाँव धरते मर गए ख़ुद-फ़रेबी से मुज़य्यन ज़िंदगी के रोज़-ओ-शब बद-नसीबी झूट कहते झूट सुनते मर गए दास्तान-ए-‘इश्क़ में 'माजिद' नया किरदार है मुझ से पहले 'फ़ैज़'-ओ-'जालिब' लिखते लिखते मर गए