बाक़ी नहीं जहान में जौर-ओ-जफ़ा का ज़िक्र लब पर है हर बशर के फ़क़त कर्बला का ज़िक्र हाथों में मेरे देख के तीर-ओ-कमान को ताइर तमाम करने लगे बद-दुआ' का ज़िक्र मेरी हुदूद-ए-फ़िक्र से बाहर हैं शैख़ जी हाथों में जाम और लबों पर ख़ुदा का ज़िक्र शहर-ए-अदब के सारे कलम-कार थक गए कामिल न हो सका तिरी नाज़ुक अदा का ज़िक्र सब कुछ जहाँ में छोड़ दिया ख़ाक हो गए ये मुख़्तसर है और सुनाऊँ अना का ज़िक्र मुफ़्लिस मिरे दयार का ग़ैरत से मर गया एक रोज़ भी किया न किसी से ग़िज़ा का ज़िक्र बे-पर्दगी पे होने लगी है पी ऐच डी बाक़ी नहीं किताब-ए-हया में हया का ज़िक्र अहमक़ बशर मिसाल भी कुत्ते की लाएगा होगा जहाँ-जहाँ भी जहाँ में वफ़ा का ज़िक्र जितने चराग़ थे सभी दहशत से बुझ गए परवाने कर रहे थे परों की हवा का ज़िक्र 'महवर' पलट न जाए मिरी कश्ती-ए-हयात इक अर्सा हो गया है किए नाख़ुदा का ज़िक्र