आँखों में क़ैद है तिरी तस्वीर लखनऊ टूटी नहीं है क़ुर्ब की ज़ंजीर लखनऊ कल रात मैं ने ख़्वाब में देखा था 'मीर' को है या'नी मेरे ख़्वाब की ता'बीर लखनऊ आँखें तरस गईं तिरे दीदार के लिए इस बार हो गई मुझे ताख़ीर लखनऊ दिल में अमीनाबाद तो लब पर हुसैनाबाद किस तौर से करूँ तिरी तफ़्सीर लखनऊ इल्म-ओ-अदब जवान हुए तेरी गोद में दुनिया में आम है तिरी तौक़ीर लखनऊ शाइ'र अदीब और मुफ़स्सिर की शक्ल में फैलाई तू ने इल्म की तनवीर लखनऊ दरकार है हक़ीर को गहवारा-ए-अदब मंज़िल है लखनऊ मिरी तक़दीर लखनऊ दो निस्बतें मिली हैं मुझे दोनों बा-शरफ़ बुनियाद मेरी सिरसी है ता'मीर लखनऊ सीना शिगाफ़ हो गया जहल-ओ-जुहूल का बरसाए तू ने इल्म के जब तीर लखनऊ ‘महवर’ बना हुआ है तू अहल-ए-ज़बान का औसाफ़ क्या करूँ तिरे तहरीर लखनऊ