बराए-ख़ैर शर से बरसर-ए-पैकार हो जाए जिसे जीना हो मरने के लिए तय्यार हो जाए अज़ाएम शल क़वा मफ़्लूज दिल बे-कार हो जाए अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए जो राह-ए-हक़ में मरने के लिए तय्यार हो जाए नज़र में उस की बाज़ीचा फ़राज़-ए-दार हो जाए अगर शौक़-ए-शहादत रूह में बेदार हो जाए जबीं ख़ंजर-ब-कफ़ हो और नज़र तलवार हो जाए इनायत की नज़र दिल पर शह-ए-अबरार हो जाए मिरा तारीक काशाना तजल्ली-ज़ार हो जाए वो दिल जिस को ख़याल-ए-मुर्सल-ए-मुख़्तार हो जाए तजल्ली-गाह-ए-रहमत मतला-ए-अनवार हो जाए क़यामत क्या है ऐ मौला क़यामत से अगर पहले हमारा और उन का सामना इक बार हो जाए तनफ़्फ़ुस मुश्क-अफ़्शाँ है तकल्लुम बर्क़-ए-जुम्बाँ है तबस्सुम है कि गोया नूर की यलग़ार हो जाए सियासत है ये दिल की क्या ख़बर अहल-ए-सियासत को कि क्यूँ-कर पर्दा-ए-इनकार में इक़रार हो जाए ये दुनिया है न हो नाज़ाँ नहीं तू बा-ख़बर नादाँ ये यूसुफ़ के लिए कब मिस्र का बाज़ार हो जाए गुज़रना है मह-ए-कनआँ' को इक दिन चाह-ए-कनआँ' से जमाल अब फिर बराए इम्तिहाँ तय्यार हो जाए ज़माने की क़यादत पाँव चूमेगी तिरे वाइ'ज़ अगर गुफ़्तार के ढब पर तिरा किरदार हो जाए सुपुर्द-ए-ख़ाक करते हैं शहीद-ए-इश्क़ को यारब ये दाना ख़ाक में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार हो जाए सुनाएगा कहाँ तक क़िस्सा-ए-ग़म 'राज़' रहने दे ये ग़म डर है कहीं दोश-ए-फ़लक पर बार हो जाए