बराए-नाम सही कोई मेहरबान तो है हमारे सर पे भी होने को आसमान तो है तिरी फ़राख़-दिली को दुआएँ देता हूँ मिरे लबों पे तिरे लम्स का निशान तो है ये और बात कि वो अब यहाँ नहीं रहता मगर ये उस का बसाया हुआ मकान तो है सिरों पे साया-फ़गन अब्र-ए-आरज़ू न सही हमारे पास सराबों का साएबान तो है अलावा उस के न कुछ और पर्दा रख मुझ से फ़सील-ए-जिस्म मिरे तेरे दरमियान तो है बिछड़ के ज़िंदा नहीं रह सकेंगे हम दोनों मुझे ये वहम तो है उन को ये गुमान तो है भली-बुरी सही मौजों में अपनी नाव तो है कटा-फटा सही कहने को बादबान तो है गुल-ए-मुराद नहीं संग-हा-ए-तिफ़्ल सही ग़रीब-ए-शहर का आख़िर किसी को ध्यान तो है