बरबाद-ए-मोहब्बत का बस इतना फ़साना है रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है कुछ कम न था उन का ग़म इस पर ग़म-ए-हस्ती भी मर-मर के सही लेकिन ये बोझ उठाना है कल मुझ को था ग़म उन का अब उन को है ग़म मेरा इक वो भी ज़माना था इक ये भी ज़माना है यकताई-ओ-कसरत में है फ़र्क़ तो बस इतना सिमटे तो मिरा दिल है फैले तो ज़माना है अल्लाह अजब शय है ये जज़्ब-ए-मोहब्बत भी देखें वो किसी जानिब दिल मेरा निशाना है छाया हुआ हर शय पर आलम है जवानी का जोबन पे है फ़स्ल-ए-गुल मिटने का ज़माना है इस दुख-भरी दुनिया की औक़ात बस इतनी है देखो तो हक़ीक़त है समझो तो फ़साना है वो दौर हवस का था ये दौर-ए-मोहब्बत है जब ग़म को भुलाते थे अब ख़ुद को भुलाना है बाक़ी न कहीं दिल में रह जाए कोई अरमाँ थोड़ा सा भटक भी लें मंज़िल पे तो आना है थे 'ग़ालिब' ओ 'मोमिन' भी यकता-ए-जहाँ लेकिन वो उन का ज़माना था ये मेरा ज़माना है दम लेने भी दे 'साहिर' ज़ालिम ये ग़म-ए-दौराँ बर्बादी-ए-उल्फ़त पर दो अश्क बहाना है