बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन सब से रहता हूँ अलग जूँ ख़ार-ए-दीवार-ए-चमन ने धुआँ दिल से उठे यारो न परवाना जले आतिश-ए-ख़ामोश हूँ मानिंद-ए-गुलज़ार-ए-चमन सिर्फ़ आराइश को हूँ गुल-हा-ए-काग़ज़ की मिसाल बू करे मुझ को न कोई और न दरकार-ए-चमन बुलबुल-ए-रिश्ता-बपा लटके है शाख़-ए-गुल से आज सख़्त उलझेड़े में है या-रब गुनहगार-ए-चमन क्या हुए मैं किस से पूछूँ हाल उन का ऐ 'निसार' अब नज़र आते नहीं वो नाज़-बरदार-ए-चमन