बुज़दिल या मज़लूम जहाँ में कहलाने से क्या होगा टूटी ही शमशीर निकालो डर जाने से क्या होगा कब तक ये तक़दीर का रोना आओ कुछ तदबीर करें आँख में आँसू चाक-ए-गरेबाँ दर्शाने से क्या होगा भूके की तुम भूक मिटाओ तो फिर कोई बात बने शीश-महल के ख़्वाब सुनहरे दिखलाने से क्या होगा धरती पर सुख चैन की ख़ातिर मन के मैल को साफ़ करो गंगा जल में जिस्म को अपने नहलाने से क्या होगा इल्म-ओ-हुनर को काम में लाओ मुस्तक़बिल की फ़िक्र करो हाल में माज़ी की भूलों पर पछताने से क्या होगा मार के ठोकर रुस्वाई को हक़ अपना ले लो 'मक़्सूद' बेच के ग़ैरत जाम-ए-मुरव्वत छलकाने से क्या होगा