बरहम हैं वो ग़ैर बे-हया से माँगें कुछ और भी ख़ुदा से अच्छा अच्छा अदू से मिलिए जाओ जाओ जी बला से क्या हाल कहें दिल-ओ-जिगर का टुकड़े टुकड़े है जा-ब-जा से टूटे काँटे तो ज़ख़्म रोए आँसू टपके ख़राश-ए-पा से राहत-तलबी समझ के ऐ दिल ऐसे बे-दर्द बे-वफ़ा से मतलूब वही कि जिस की फ़रियाद निकलेगा काम क्या दुआ से रो लें आओ गले लिपट कर फ़ुर्सत फिर हो न हो क़ज़ा से हम तक भी कोई शमीम-ए-गेसू इतना कह दीजियो सबा से गुज़रे क्या जिस से जान दे दे पूछो तो अपने मुब्तला से देखा सब को 'नसीम' देखा ख़ामोश बयाँ मुद्दआ' से