बरपा हैं अजब शोरिशें जज़्बात के पीछे बे-ताब है दिल शौक़-ए-मुलाक़ात के पीछे जिन को न समझ पाए हम अरबाब-ए-नज़र भी सौ राज़ हैं उस शोख़ की हर बात के पीछे इस ठोस हक़ीक़त से तार्रुज़ नहीं मुमकिन इक सुब्ह-ए-तजल्ली है हर इक रात के पीछे अरबाब-ए-वतन हम को ज़रा ये तो बताएँ किन ज़ेहनों की साज़िश है फ़सादात के पीछे मंज़र है लहू-रंग सुलगती हैं फ़ज़ाएँ शो'लों का वो सैलाब है बरसात के पीछे हम उन को समझते हैं 'हज़ीं' कह नहीं सकते अस्बाब जो हैं तल्ख़ी-ए-हालात के पीछे