बरसाए जितने फूल क़फ़स पर बहार ने सब चुन लिए वो मेरे दिल-ए-बे-क़रार ने दम तोड़ने से पहले जुदाई न की पसंद कितना दिया है साथ शब-ए-इंतिज़ार ने उभरे हैं दिल की दाग़ भी मौसम के साथ साथ चमका दिया बहार को आ कर बहार ने इक दाग़ तक कफ़न पे न निकला ब-रोज़-ए-हश्र रखा समझ के तेरी अमानत मज़ार ने ऐ 'अब्र' मेरा तोड़ दिया रिश्ता-ए-हयात हो कर शिकस्त वादा-ए-बे-ए'तिबार ने