बस एक बार फ़क़त एक बार कम से कम सिवा मिरा हो तिरा इख़्तियार कम से कम हर एक रंग तुझे ढाँप दूँगा सर-ता-पा तिरी हर एक का बदला हज़ार कम से कम न साथ साथ सही इतनी दूर भी तो न जा उजाड़ मत मिरे क़ुर्ब-ओ-जवार कम से कम है इत्तिफ़ाक़ कि इंसान निकले दोनों ही हुज़ूर-ए-वाला बहुत ख़ाकसार कम से कम यूँ अपनी साख बचाई किया उसे उर्यां कि अपना शेवा नहीं तू-तकार कम से कम सभी हैं राम भरोसे ख़ुदा की बस्ती में कोई तो ख़ुद पे करे इंहिसार कम से कम शिकस्त पर कोई नौहा न फ़तह पर नारा न ज़िंदगी से हो उतना फ़रार कम से कम