बस इक नज़र में दिल-ओ-जाँ फ़िगार करता है वो शख़्स कितने सलीक़े से वार करता है तुम्हारी चाल से तो मात खा गया वो भी वही जो उड़ते परिंदे शिकार करता है ये मरहला भी किसी इम्तिहाँ से कम तो नहीं वो शख़्स मुझ पे बहुत ए'तिबार करता है ये किस का हुस्न महकता है मेरे शेरों में ये कौन है जो इन्हें ख़ुश-गवार करता है तुम्हारे ग़म को में दिल से लगा के रखता हूँ यही तो है जो मुझे बा-वक़ार करता है