बस इक नज़र से ही तस्वीर कर गया ये कौन मिरे वजूद को ज़ंजीर कर गया ये कौन किताब-ए-ज़ीस्त पे मैं था बुझा हुआ इक हर्फ़ सुनहरे रंग में तहरीर कर गया ये कौन है मेरे जिस्म में अब तक वो लम्स की ख़ुशबू ज़मीन-ए-दश्त को तस्ख़ीर कर गया ये कौन हर एक कूचा है साकित हर इक सड़क वीरान हमारे शहर में तक़रीर कर गया ये कौन जिसे भी देखिए हैरत-ज़दा सा लगता है कि शहरयार को रह-गीर कर गया ये कौन अभी तो इन की शरारत के दिन थे ऐ 'शहज़ाद' अभी से बच्चों को गम्भीर कर गया ये कौन