आँसू हैं और न आह-ओ-ज़ारी है इक अजब दिल को बे-क़रारी है था अधूरा कभी बिना मेरे जिस को दो पल का साथ भारी है कुछ न था हाथ में कभी तेरे साँस तक पे बे-अख़्तियारी है जी रहे हो समझ के अपनी तुम बा-ख़ुदा ज़िंदगी हमारी है कुछ तमाशा लगे कि बाक़ी है धड़कनों का जो खेल जारी है जी रहे हैं बिना तिरे अब तक इस में क़ुदरत की दस्त-कारी है 'शम्सा' महफ़िल में अब उजाला है क्यूँकि ये रौशनी तुम्हारी है