बस इक तितली उड़ाना चाहता हूँ फ़ज़ाओं में ठिकाना चाहता हूँ तिरी आँखों में आँसू हैं तो होंगे तुझे मैं क्या हँसाना चाहता हूँ अगर बाज़ार है दुनिया तो इस से मैं रिश्ता ताजिराना चाहता हूँ मैं अपनी आँख की ख़ाली जगह में नई बस्ती बसाना चाहता हूँ ये कैसी रौशनी की आरज़ू है मैं किस का घर जलाना चाहता हूँ सफ़र का सिलसिला यूँही नहीं है कोई बेहतर ठिकाना चाहता हूँ जले ही जा रहा है कब से 'आदिल' चराग़-ए-दिल बुझाना चाहता हूँ