ख़ामोश झील में कोई कंकर गिरा नहीं लहरों का ज़िंदगी में मिरी सिलसिला नहीं बादल की तरह आँखें बरसती रहीं मगर शादाब फिर भी बर्ग-ए-मोहब्बत हुआ नहीं मकड़ी ने उस की आँखों पे जाले लगा दिए मुद्दत से इंतिज़ार का उक़्दा खुला नहीं रौशन हुई हयात किसी के ख़याल से यूँ तो चराग़ घर में हमारे जला नहीं माज़ी भी महव-ए-ख़्वाब हुआ कब का दोस्तो मुस्तक़बिल-ए-क़रीब का भी दर खुला नहीं ये मौसम-ए-उमीद भी कब का गुज़र गया 'आदिल' शजर पे आस का इक फल लगा नहीं