बस इतना वास्ता है मिरा ज़िंदगी के साथ जैसे कि अजनबी हो कोई अजनबी के साथ घबरा के मुझ से ऐ शब-ए-हिज्राँ जुदा न हो है तेरी ज़िंदगी भी मिरी ज़िंदगी के साथ अब शौक़-ए-जुस्तुजू है न है दर्द-ए-आरज़ू जीने को जी रहा हूँ मगर बे-दिली के साथ आया हूँ मय-कदे में बड़ी तिश्नगी लिए साक़ी पिला दे आज तू दरिया-दिली के साथ 'अख़्तर' अब उन की बज़्म का अहवाल क्या कहें बेगाना आदमी हो जहाँ आदमी के साथ