बस जिबिल्लत से ही लगता हूँ दरिंदा जैसे रिज़्क़ करता हूँ इकट्ठा मैं परिंदा जैसे यूँ तो मैं एक ज़माने से था मुर्दा यारम तुम को देखा है तो लगता हूँ मैं ज़िंदा जैसे तेरे कूचे में लिए आस खड़ा हूँ मैं यूँ कोई दफ़्तर में हो दरख़्वास्त-दहिन्दा जैसे ऐसे अफ़्सोस लिए देख रहे हैं सारे मैं कोई शहर हूँ बर्बाद कुनिन्दा जैसे अपने हिस्से का उजाला तो करूँगा इम-शब उड़ता फिरता हूँ 'नदीम' आज ख़ज़िंदा जैसे