बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे गुज़र भी जाए कोई ग़म तो वाक़िआ' न लगे कभी न फूल से चेहरे पे गर्द-ए-यास जमे ख़ुदा करे कि उसे इश्क़ की हवा न लगे नज़र न आए मुझे हुस्न के सिवा कुछ भी वो बेवफ़ा भी अगर है तो बेवफ़ा न लगे यही दुआ है वो जब हो जमाल से आगाह लिबास-ए-नाज़ भी पहने तो दूसरा न लगे वो मेहरबाँ सा लगे उस की कुछ करो तदबीर ख़फ़ा भी हो तो मिरी आँख को ख़फ़ा न लगे मिले जो नूर-तलब दिल भी यूँ मुनव्वर हो मिरा हरीफ़ भी शाम-ओ-सहर बुरा न लगे कहाँ से लाऊँ 'हसन' गुफ़्तुगू में वो अंदाज़ मिरा कलाम किसी को भी बे-मज़ा न लगे