बसारतों पे भँवर इंकिशाफ़ करता है कि बुलबुले का समुंदर तवाफ़ करता है अजीब भूल-भुलय्याँ है जुस्तुजू ख़ुद की हर एक नक़्श-ए-क़दम इंहिराफ़ करता है मज़ा तो जब है कि हम उस को ना ख़ुदा कर लें हवा का रुख़ जो हमारे ख़िलाफ़ करता है जिसे गुनाह की तौफ़ीक़ ही न हो ता-उम्र उसे ख़ुदा न ज़माना मुआ'फ़ करता है लहू की मार से बचिए कि जोश में आए तो क़तरा क़तरा बदन में शिगाफ़ करता है बला से रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल मिरी ग़ज़ल में नहीं नुकीला लहजा घुटन को तो साफ़ करता है