बता मंज़िल-ए-शौक़ क्या हो गया मिरी कोशिशों का सिला खो गया हवादिस की आँधी है ज़ोरों पे आज मिरा राहबर आज क्यों सो गया न पंद-ओ-नसीहत न ज़ौक़-ए-अमल ये शैख़-ओ-बरहमन को क्या हो गया चमन से गुज़रती है मुँह फेर कर सबा की अदाओं को क्या हो गया तिरी दिल-नवाज़ी की क्या देगा दाद पलट कर वो आया नहीं जो गया