बताओ किस तरह पहुँचे हो शब को तुम ठिकाने पर मुझे तो कुछ भरोसा भी नहीं है इस ज़माने पर बताओ कौन था किस ने जला डाला तुम्हारा घर परिंदा भी नज़र रखता है अपने आशियाने पर न जाने किस तरह होंगे यहाँ हालात बेहतर अब यहाँ तो साँप बैठे हैं जिधर देखो ख़ज़ाने पर मुझे मालूम है मुझ को दिया है ज़हर तू ने ही भरोसा क्या करूँ अब यार तेरे दोस्ताने पर ये हम से दुश्मनी तेरी समझ में ही नहीं आती फ़क़त हम अहल-ए-दिल ही रहते हैं तेरे निशाने पर कोई ऐसा फ़साना तू सुना ऐ हम-सफ़र मुझ को हक़ीक़त का गुमाँ होने लगे तेरे फ़साने पर अभी भी वक़्त है 'ज़ेबी' अगर चाहो तो लौट आओ यहाँ भी नाम लिक्खा है तुम्हारा दाने दाने पर