बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है By Ghazal << उस से पहचान हो गई होगी हूर-ओ-क़ुसूर से न बहिश्त-... >> बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है मिरे माथे पे जो बिंदी लगी है सभी शोहदे इकट्ठा हो गए हैं यहाँ क्या हुस्न की मंडी लगी है बरहमन-ज़ाद हूँ ये ध्यान रखना सुना है फिर कोई अच्छी लगी है यक़ीं कर लो मिरे हाथों में अब तक तुम्हारे नाम की मेहंदी लगी है Share on: