हूर-ओ-क़ुसूर से न बहिश्त-ए-बरीँ से है नाज़ाँ हूँ मैं कि मेरा तअ'ल्लुक़ ज़मीं से है वक़्फ़-ए-फ़रोग़-ए-रंग-नज़र और दिल ब-ज़िद पैराहन-ए-हयात दरीदा कहीं से है सज्दों की ज़ौ नहीं है तो ज़ख़्मों के फूल हैं बाक़ी कोई तो संग का रिश्ता जबीं से है क्या ज़िक्र-ए-बे-रुख़ी कि ये शेवा है हुस्न का शिकवा मुझे तिरी निगह-ए-अव्वलीं से है मैं तेरा बाँकपन हूँ मुझे हाथ से न खो अंगुश्तरी की ज़ीनत-ओ-क़ीमत नगीं से है धूल उड़ रही है दीदा-ए-खूँ-नाबा-बार में क़ाएम अब अश्क-ए-ग़म का भरम आस्तीं से है हम भागते फिरें ये मुरव्वत से है बईद जब गर्दिश जहाँ को अक़ीदत हमीं से है आशोब-ए-रोज़गार ने ये हाल कर दया बातें कहीं की हैं तो हवाला कहीं से है 'ख़ावर' किसी भी रिश्ते को हासिल नहीं सबात जुज़ रिश्ता-ए-वफ़ा जो दम-ए-वापसीं से है