बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का दीवान है हमारा कीसा जवाहरी का चेहरा तिरा सा कब है सुल्तान-ए-ख़ावरी का चीरा हज़ार बाँधे सर पर जो वो ज़री का मुँह पर ये गोश्वारा मोती का जल्वा-गर है जैसे क़िरान-ए-बाहम हो माह ओ मुश्तरी का आईना-ख़ाने में वो जिस वक़्त आन बैठे फिर जिस तरफ़ को देखो जल्वा है वाँ परी का जुज़ शौक़-ए-दिल न पहुँचूँ हरगिज़ ब-कू-ए-जानाँ ऐ ख़िज़्र कब हूँ तेरी मुहताज रहबरी का जो देखता है तुझ को हँसता है क़हक़हे मार ऐ शैख़ तेरा चेहरा मब्दा है मस्ख़री का तालिब हैं सीम-ओ-ज़र के ख़ूबान-ए-हिन्द 'सौदा' अहवाल कौन समझे आशिक़ की बे-ज़री का