उस ने जब ख़ुसरव-ए-परवेज़ की धमकी दी है मैं ने भी इश्क़-ए-बला-ख़ेज़ की धमकी दी है मैं जो रखता हूँ उसे देख के भी होश बहाल उस की आँखों ने मय-ए-तेज़ की धमकी दी है वो जो दिल देने से इंकार किया करता है मैं ने इक लम्स-ए-दिल-आवेज़ की धमकी दी है पड़ गई लज़्ज़त-ए-आज़ार की आदत जो मुझे तुंद-ख़ू ने कफ़-ए-गुल-रेज़ की धमकी दी है मैं ने जब जब भी किया उस से मज़ालिम का गिला उस ने कुछ और भी महमेज़ की धमकी दी है