बयाँ कर दर्द चश्म-ए-तर हमारा कहीं गुम हो गया है घर हमारा सलामत इस लिए है सर हमारा क़सीदा पढ़ते हैं पत्थर हमारा कहाँ हो चाँद-तारो तुम कहाँ हो तुम्हारा मुंतज़िर है घर हमारा लड़कपन आज भी ज़िंदा है हम में मचल उठता है दिल अक्सर हमारा अभी तारी है चेहरों पर उदासी अभी बदला नहीं मंज़र हमारा मरज़ क़ाबू से बाहर हो गया था न रोता कैसे चारागर हमारा मुसाफ़िर हैं कहीं भी सो रहेंगे हमारे साथ है बिस्तर हमारा न जाने क्या ख़ता हम से हुई है सुना है ज़िक्र है घर घर हमारा कोई तो दाद दे जी भर के हम को कोई तो शे'र हो बेहतर हमारा मिटा सकते नहीं हम को अंधेरे बहुत उजला है पस-मंज़र हमारा करिश्मा देखिए ख़ुश-क़ामती का न टकराया किसी से सर हमारा सब अहल-ए-ख़ाना हैं कमरे के अंदर जनाज़ा रक्खा है बाहर हमारा अना का आइना धुँदला गया जब तो निखरा और भी 'जौहर' हमारा