न बुतों तक न हम अल्लाह के घर तक पहोंचे अपने नाले न कभी बाब-ए-असर तक पहोंचे हौसला दिल का रहा दिल में नज़ारा कैसा लाख चाहा न मगर आप के घर तक पहोंचे रुत जवानी की गई आलम-ए-पीरी आया घर से शब को चले मंज़िल पे सहर तक पहोंचे नक़्श-ए-पा भी न उन्हें इक नज़र आया हैहात जो तही-बख़्त तिरी राहगुज़र तक पहोंचे मो'तबर लोगों से हम ने ये सुना है 'मसऊद' दर से उठ कर तिरे अल्लाह के घर तक पहोंचे