बे-आब मौसमों का सामान कर के रोया ये दिल कि आँख को भी वीरान कर के रोया इस ख़ैर-ख़्वाह को भी ख़ुद ही तसल्लियाँ दूँ किस किस दुआ का वो भी नुक़सान कर के रोया सावन की ज़द में आए फिर क़हक़हे बसंती तेरा ख़याल हम को हैरान कर के रोया उस को पता नहीं था लाए थे पल की मोहलत वो मेज़बान हम को मेहमान कर के रोया ढूँडा फ़रार उस ने जब इक रफ़ीक़-ए-नौ में वो अपनी मुश्किलों को आसान कर के रोया