चारासाज़ी का तलबगार लगे है वो भी इक मसीहा है सो बीमार लगे है वो भी जिस की ख़ातिर ली ज़माने की अदावत हम ने अब ज़माने का तरफ़-दार लगे है वो भी अब रग-ओ-जाँ को बचाऊँ तो बचाऊँ कैसे साँस चलती है तो तलवार लगे है वो भी किस तरह मंज़िलें तय होंगी बदन की ऐ दिल उस से मिलता हूँ तो दीवार लगे है वो भी बे-मुग़ीलाँ सही तपते हुए सहरा का सफ़र पाँव रखता हूँ मगर ख़ार लगे है वो भी