बे-ख़ुदी में तिरी क़ुर्बत के ज़माने देखे तुझ से वाबस्ता कई ख़्वाब सुहाने देखे हम ने तहरीर किए थे जो लहू से अपने वुसअ'त-ए-अर्ज़ पे बिखरे वो फ़साने देखे तुझ को महसूस तो हर शय में किया है हम ने तुझ को देखा न कहीं तेरे ठिकाने देखे सिर्फ़ इक तेरे चमकते हुए चेहरे के सिवा शीशा-ए-दिल में सभी अक्स पुराने देखे दौर-ए-हाज़िर की हर इक शय से हुए दूर बहुत हम ने जब गुज़रे हुए अपने ज़माने देखे वा'दा करके भी न आने की हसीं बातों में हम ने उस शोख़ परी-रू के बहाने देखे