दयार-ए-शब में नहीं वादी-ए-सहर में नहीं मक़ाम-ए-शौक़ कोई आज भी नज़र में नहीं सुकूँ-पज़ीर है जो बहर-ए-बे-कराँ दिल में वो एक अश्क अभी मेरी चश्म-ए-तर में नहीं अगरचे मौसम-ए-गुल है मगर कोई ख़ुशबू किसी कली में किसी फूल में शजर में नहीं ग़लत कि मौज-ए-बला से हमें गिला है कोई बजा कि डूब गए हम मगर भँवर में नहीं वो ज़िंदगी ही मिरी जुस्तुजू का महवर है कहीं भी ऐ ग़म-ए-दिल जो मिरी नज़र में नहीं 'कँवल' को ढूँढिए जा कर किसी बयाबाँ में बहुत दिनों से वो दीवाना अपने घर में नहीं