बे-क़रारी जो इधर है वो उधर है कि नहीं ये नज़र जैसे है बे-कल वो नज़र है कि नहीं दिल की हालत का बिगड़ना तो है मा'मूल मगर वो जो हैं इस का सबब उन को ख़बर है कि नहीं गो निगाहों से निगाहें तो मिली हैं अक्सर रब्त उस दिल को कुछ इस दिल से मगर है कि नहीं ये शब-ए-हिज्र मिरी जाँ ही न ले जाए कहीं न सही वस्ल मुक़द्दर में सहर है कि नहीं क्यों मिरी रूह को हर पल ये गुमाँ रहता है जिस मकाँ में है मकीं उस का ही घर है कि नहीं दोस्त छोड़ आएँगे बे-शक मुझे शमशान तलक उस के आगे नहीं मालूम सफ़र है कि नहीं 'आरिफ़ो क्या है मजाज़ और हक़ीक़त क्या है वो जो आता है निगाहों को नज़र है कि नहीं पढ़ के दीवान-ए-'सदा' बोलो ज़रा नक़्क़ादो शे'र कहने का कुछ उस में भी हुनर है कि नहीं