बे-रंग बे-निशान बलाओं की ज़द में हैं मेरे सभी चराग़ हवाओं की ज़द में हैं भीगी हुई हवाएँ बदन चूमने लगीं अब क़ाफ़िले हमारे घटाओं की ज़द में हैं कट कट के गिर रही हैं लवें जू-ए-ख़ौफ़ में रौशन चराग़ तीरा फ़ज़ाओं की ज़द में हैं हर्फ़-ए-ग़लत की तरह मिटे जाते हैं नुक़ूश राहें तमाम राहनुमाओं की ज़द में हैं बीनाई जा रही है मह-ओ-आफ़्ताब की आईने शश जिहत के ख़लाओं की ज़द में हैं कश्कोल बे-तलब की कशिश काम आ गई सारे बुलंद-ओ-पस्त दुआओं की ज़द में हैं हैरत सुलग रही है हर इक शाख़-ए-दीद पर जंगल तमाम शो'ला-नवाओं की ज़द में हैं 'यावर' मिरी ये आँखें किसी के जमाल की बे-दाग़ उजली उजली रिदाओं की ज़द में हैं