बे-सबब कौन ख़ून रोता है दर्द सा एक दिल में होता है क्यों मोहब्बत में जान खोता है दहर में कौन किस का होता है आह कैसी है रात फ़ुर्क़त की जागता हूँ नसीब सोता है दीदा-ए-तर का हौसला देखो मुझ को मंजधार में डुबोता है तंग आ कर फ़िराक़ में 'हाजिर' ज़िंदगानी से हाथ धोता है