बे तिरे जान न थी जान मिरी जान के बीच आन कर फिर के जलाया तू मुझे आन के बीच एक दिन हाथ लगाया था तिरे दामन को अब तलक सर है ख़जालत से गरेबान के बीच तू ने देखा न कभी प्यार की नज़रों से मुझे जी निकल जाएगा मेरा इसी अरमान के बीच आज आशिक़ के तईं क्यूँ न कहे तू दुर दुर वास्ता ये है कि मोती है तिरे कान के बीच हुई ज़बाँ लाल तिरे हाथ से खा के बीड़ा क्या फ़ुसूँ पढ़ के खिलाया था मुझे पान के बीच कुछ तो मजनूँ को हलावत है वहाँ दीवानो छोड़ शहरों को जो फिरता है बयाबान के बीच देख 'हातिम' को भला तू ने बुरा क्यूँ माना क्या ख़लल उस ने किया आ के तिरी शान के बीच