बेचैन दिल है फिर भी चेहरे पे दिलकशी है मुफ़्लिस की ज़िंदगी में जो कुछ है क़ुदरती है एहसास का परिंदा जागा है मेरे अंदर उस की अता से ख़ुश हूँ दिल महव-ए-बंदगी है सहराओं से तो प्यासे लौटे नहीं कभी हम दरिया के बीच में हैं तो प्यास लग रही है हम सोचते हैं अक्सर क्यूँ हश्र सा है बरपा जज़्बों में है तरावत फ़िक्रों में शो'लगी है मौसम की ही तरह अब इंसाँ बदल रहे हैं ये फ़ैज़-ए-आगही है या क़स्द-ए-गुमरही है किस से कहूँ मैं 'अहसन' रोज़-ए-अज़ल से अब तक कुटियों में तीरगी है महलों में रौशनी है